बिना सक्षम मंजूरी के जंगलों पर कब्जा, वन विभाग बना मूकदर्शक



रायगढ़ जिले में निजी उद्योग समूहों और प्रशासनिक अधिकारियों के गठजोड़ का एक और चौंकाने वाला मामला सामने आया है। धनवादा पावर एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने वन अधिनियम को ताक पर रखकर और बिना अधिकृत स्वीकृति के भालूपखना में लघु जल विद्युत परियोजना का पूरा ढांचा खड़ा कर दिया। यह सब तब हुआ जब स्थानीय वन विभाग के अधिकारी पूरी स्थिति से अवगत थे, लेकिन उन्होंने आंखें मूंदे रखीं।

अवैध निर्माण, नियमों की खुली अनदेखी
वन अधिनियम के स्पष्ट दिशा-निर्देशों के अनुसार, बिना सक्षम मंजूरी के वन भूमि पर किसी भी प्रकार की गतिविधि प्रतिबंधित है। लेकिन इसके बावजूद, धनवादा पावर कंपनी ने एफसीए नियमों की अवहेलना करते हुए प्रभावित भूमि पर अपना पूरा प्रोजेक्ट खड़ा कर दिया।

वन विभाग के एक अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि कंपनी के इस प्रोजेक्ट को अभी तक वन विभाग की स्वीकृति नहीं मिली है। फिर भी, निर्माण कार्य लगभग पूरा कर लिया गया है।
प्रशासनिक सरंक्षण पर उठे सवाल

सबसे बड़ा सवाल यह है कि स्थानीय वन विभाग ने कंपनी को यह अवैध निर्माण करने की छूट किस आधार पर दी?
- डीएफओ अभिषेक जोगावत की भूमिका संदेह के घेरे में है। उनसे संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया।
- प्रशासनिक लापरवाही और उद्योग समूहों को दिए जा रहे संरक्षण का यह जीता-जागता उदाहरण है।
बिना अनुमति जंगलों पर कब्जे की खुली छूट?
यह मामला सिर्फ एक प्रोजेक्ट तक सीमित नहीं है। बल्कि, यह दिखाता है कि कैसे कॉरपोरेट और प्रशासनिक गठजोड़ जंगलों, पर्यावरण और कानून को रौंदते हुए अवैध रूप से अपने हित साधने में लगे हैं।

क्या राज्य सरकार और केंद्रीय वन मंत्रालय इस गंभीर उल्लंघन पर कोई संज्ञान लेगा? या फिर जिम्मेदार अधिकारी और कॉरपोरेट घराने की ये साठगांठ ऐसे ही चलती रहेगी?
