धरमजयगढ़ नगर पंचायत में आदिवासी उपाध्यक्ष की दावेदारी मजबूत, भाजपा के निर्णय पर टिकी निगाहें
धरमजयगढ़। नगर पंचायत धरमजयगढ़ में इस बार उपाध्यक्ष पद पर आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व मिलने की प्रबल संभावना बन रही है। भाजपा के वरिष्ठ पार्षद अजय राठिया ने इस पद के लिए अपनी दावेदारी पेश की है, और पार्टी के भीतर उनके नाम पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। वार्ड क्रमांक 13 से लगातार तीसरी बार पार्षद चुने गए अजय राठिया को अपने क्षेत्र में जबरदस्त जनसमर्थन प्राप्त है, और यही वजह है कि उनके नाम पर सहमति बनने की उम्मीद बढ़ गई है।
आदिवासी वोट बैंक से भाजपा को मजबूती, लेकिन प्रतिनिधित्व पर सवाल
धरमजयगढ़ नगर में भाजपा की मजबूती का सबसे बड़ा आधार आदिवासी वोट बैंक रहा है। नगर के कई वार्ड—जैसे पीपरमार, चिकटवानी, तेन्दुमार—में आदिवासी मतदाताओं की बहुलता है, और चुनाव के दौरान यह समुदाय भाजपा को भारी समर्थन देता रहा है। विशेष रूप से अजय राठिया के वार्ड में भाजपा हमेशा एकतरफा बढ़त बनाती आई है। बावजूद इसके, जब इस वर्ग को संगठन में प्रतिनिधित्व देने की बारी आती है, तो स्थानीय भाजपा नेतृत्व इस समुदाय को अक्सर नजरअंदाज करता आया है।
अब तक ओबीसी वर्ग का रहा वर्चस्व, बदलाव की जरूरत महसूस हो रही
नगर पंचायत के इतिहास पर नजर डालें तो अब तक उपाध्यक्ष पद पर ज्यादातर ओबीसी वर्ग के पार्षदों का कब्जा रहा है। भाजपा संगठन ने कई बार इस पद के लिए इसी वर्ग को प्राथमिकता दी, जिससे आदिवासी समाज के लोकप्रिय नेता सिर्फ भीड़ का हिस्सा बनकर रह गए। लेकिन इस बार परिस्थितियां बदली हुई नजर आ रही हैं। पार्टी के भीतर यह चर्चा जोरों पर है कि आदिवासी वर्ग की नाराजगी दूर करने और संतुलन बनाए रखने के लिए उपाध्यक्ष पद पर इस समाज से किसी प्रभावशाली नेता को मौका दिया जाना चाहिए।
विजय यादव और टार्जन भारती भी रेस में, लेकिन नई सोच की मांग
इस पद के लिए अजय राठिया के अलावा दो अन्य दावेदार—विजय यादव और टार्जन भारती—भी सामने आए हैं। ये दोनों पहले भी उपाध्यक्ष रह चुके हैं और अब फिर से इस पद पर दावेदारी कर रहे हैं। लेकिन स्थानीय कार्यकर्ताओं और आदिवासी समाज के लोगों का मानना है कि इस बार बदलाव होना चाहिए और किसी नए चेहरे को मौका दिया जाना चाहिए।
भाजपा के निर्णय पर टिकी निगाहें, ऐतिहासिक अवसर को भुनाने की चुनौती
अब सबकी निगाहें भाजपा के फैसले पर टिकी हैं। यदि अजय राठिया को उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी मिलती है, तो यह धरमजयगढ़ के लिए एक ऐतिहासिक क्षण होगा। इससे आदिवासी समाज को संगठन में प्रतिनिधित्व मिलेगा और भाजपा को भी अपने आदिवासी वोट बैंक को और मजबूत करने का अवसर मिलेगा।
पार्टी के लिए यह सही समय है कि वह आदिवासी समाज की आकांक्षाओं को समझे और उनके नेतृत्व को भी आगे बढ़ने का अवसर दे। यदि इस बार भी आदिवासी वर्ग को उपाध्यक्ष पद से दूर रखा जाता है, तो इससे स्थानीय राजनीति में असंतोष बढ़ सकता है और भविष्य में भाजपा को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है।
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