
*धरमजयगढ़ में पुरुँगा, तेन्दुमुड़ी, सम्हारसिंघा और कोकदार के साथ अब अप्रभावित गांव भी आए साथ, एक स्वर में उठी जल-जंगल-जमीन बचाने की पुकार*
धरमजयगढ़ की धरती ने एक बार फिर एकता और संघर्ष की ऐसी तस्वीर देखी जिसने सबको भावुक कर दिया।
जहां एक ओर कोयला खदान परियोजना से प्रभावित गांव पुरुँगा, तेन्दुमुड़ी, सम्हारसिंघा और कोकदार के लोग अपने जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए आवाज़ उठा रहे हैं, वहीं अब आसपास के अप्रभावित गांवों के ग्रामीणों ने भी उनके साथ खड़े होकर यह साबित कर दिया है कि लड़ाई सिर्फ जमीन की नहीं, अस्तित्व और अस्मिता की रक्षा की है।
मंगलवार को धरमजयगढ़ के एसडीएम कार्यालय के बाहर एक अभूतपूर्व दृश्य देखने को मिला जब चैनपुर, रामनगर, सिथरा, नवागांव और बरतापाली जैसे अप्रभावित गांवों के ग्रामीण भी बड़ी संख्या में पहुंचे और एक स्वर में समर्थन व्यक्त किया। इन ग्रामीणों ने एसडीएम धरमजयगढ़ को ज्ञापन सौंपकर आगामी 6 नवंबर को ग्राम पुरुँगा में व्यापक स्तर पर कंपनी विरोधी आंदोलन की सूचना दी।
उन्होंने कहा कि जब तक सरकार और कंपनी ग्रामीणों की बात नहीं सुनती, तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा।ग्रामीणों ने कहा कि यह आंदोलन केवल कुछ गांवों का नहीं, बल्कि धरमजयगढ़ क्षेत्र के हर गांव, हर नागरिक और हर ग्रामीण की पुकार है जो अपनी पहचान बचाने के लिए लड़ रही है।
उन्होंने कहा कि जल, जंगल और जमीन सिर्फ संसाधन नहीं, बल्कि पीढ़ियों की स्मृतियां, संस्कार और संस्कृति हैं जिन्हें वे किसी कीमत पर खोने नहीं देंगे। अलग अलग ग्रामीणों का यह संगठित स्वर अब प्रशासन और कंपनी दोनों के लिए एक गंभीर संदेश है कि जब जनता एकजुट हो जाए, तो कोई भी ताकत उसकी आवाज़ दबा नहीं सकती।



