धरमजयगढ़ – अदाणी समूह के पुरुँगा कोल ब्लॉक परियोजना से स्थानीय लोगों को “हजारों रोजगार” मिलने का जो दावा किया जा रहा है, उसके पीछे के आधिकारिक आँकड़े एक अलग ही कहानी बयान कर रहे हैं। परियोजना की रिपोर्ट के अनुसार निर्माण चरण में मात्र 50 स्थायी और संचालन चरण में 400 स्थायी रोजगार सृजित होंगे। यानी इतनी विशाल कोयला परियोजना के लिए जो भूमि, जंगल और जनजीवन दाँव पर लगे हैं, उनके मुकाबले रोजगार का लाभ नगण्य हैनिर्माण चरण : केवल 50 स्थायी रोजगारजानकारी के अनुसार निर्माण काल में कुल 50 लोगों को स्थायी नौकरी मिलेगी।
कार्यकाल 660 दिनों का बताया गया है, जिससे कुल 33,000 मानव-दिवस का काम बनता है।
अस्थायी या ठेका मज़दूरों के लिए 66,000 मानव-दिवस का प्रावधान है — यानी लगभग 660 लोगों को 100 दिन का काम।कुल मिलाकर निर्माण चरण में 99,000 मानव-दिवस का रोजगार सृजन दिखाया गया है, जो औसतन 270 व्यक्ति-वर्ष के बराबर है।
स्पष्ट है कि यह रोजगार आँकड़ों में भले बड़ा दिखे, वास्तविकता में बेहद सीमित है।। संचालन चरण : 400 स्थायी कर्मचारी, बाक़ी ठेकासंचालन काल के लिए रिपोर्ट में 400 स्थायी कर्मचारियों की संख्या दी गई है।
इनके लिए कार्यकाल 14,520 दिन यानी करीब 40 वर्ष बताया गया है, जिससे कुल 58,08,000 मानव-दिवस बनते हैं।वहीं, ठेका मजदूरों के लिए 87,12,000 मानव-दिवस का प्रावधान है — यानी रोजगार का बड़ा हिस्सा अस्थायी व असुरक्षित श्रेणी में आता है।
कुल मिलाकर 1 करोड़ 45 लाख 20 हजार मानव-दिवस का काम दिखाया गया है, जो औसतन प्रति वर्ष करीब 1,800 से 2,000 लोगों को सीमित या आंशिक रोजगार देगा।स्थानीय हित पर सवाल धरमजयगढ़ क्षेत्र के ग्रामीणों और प्रतिनिधियों का कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर जमीन अधिग्रहण, जंगल कटाई और पर्यावरणीय प्रभाव के बदले सिर्फ 400 स्थायी नौकरियाँ मिलना एक मज़ाक जैसा है।
आदिवासी अंचल के युवाओं को लंबे समय तक स्थिर रोजगार देने का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं दिखता।‘विकास’ की कीमत : जमीन, जंगल और जनजीवनधरमजयगढ़ छाल रेंज का यह इलाका पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील माना जाता है।
यहाँ के जंगल, वन्यजीव और जलस्रोत स्थानीय जीवन का आधार हैं। ऐसे में परियोजना से यदि सैकड़ों परिवार विस्थापित होते हैं और बदले में रोजगार का लाभ केवल कुछ सौ लोगों तक सीमित रहता है, तो यह सौदा निश्चित रूप से “विकास नहीं, विनाश का सौदा” कहा जाएगा।यदि हजारों एकड़ जमीन और जंगल देने के बाद भी स्थानीय युवाओं को केवल गिनती की नौकरियाँ मिलती हैं, तो यह विकास नहीं — एक अन्यायपूर्ण सौदा है।
आंकड़ों की इस चमक में धरमजयगढ़ के ग्रामीणों की ज़मीन, पहचान और भविष्य धीरे-धीरे धुँधला पड़ जायेगा।”

