धरमजयगढ – छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ तहसील अंतर्गत ग्राम बल्पेदा में एक बड़ा ज़मीन घोटाला सामने आया है, जिसने न केवल प्रशासन को चौकन्ना कर दिया है, बल्कि खरीदार, विक्रेता और असली वारिस – तीनों पक्षों को उलझन में डाल दिया है। यह मामला न केवल संपत्ति विवाद बल्कि दस्तावेज़ीय धोखाधड़ी और प्रशासनिक लापरवाही का जीता-जागता उदाहरण बन गया है।

विवाद की जड़: 2 एकड़ बताकर 8 एकड़ की बिक्री
प्राप्त जानकारी के अनुसार, मृतक ढोलीराम की कृषि भूमि – जो कुल 8 एकड़ है – उसे उनके पुत्रों सोभन सिंह और मंगल सिंह द्वारा मात्र 2 एकड़ बताकर बेच दिया गया। इस पूरे विक्रय में सबसे बड़ा छल यह रहा कि ढोलीराम की पत्नी और पुत्री, जो विधिसम्मत उत्तराधिकारी हैं, उन्हें इस बिक्री की कोई जानकारी नहीं थी और न ही उनकी अनुमति ली गई।

एसडीएम ने दिए जांच के आदेश, तहसीलदार से मांगी रिपोर्ट
मामले की गंभीरता को देखते हुए अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व), धरमजयगढ़ ने तहसीलदार को तत्काल जांच कर प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के निर्देश जारी किए हैं। पीड़ित वारिसों द्वारा प्रस्तुत शिकायत के आधार पर यह निर्देश जारी हुए हैं, जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि यह विक्रय उत्तराधिकार कानून का सीधा उल्लंघन है।

विक्रय दस्तावेज़ों में चौंकाने वाली गड़बड़ियां जमीन की बिक्री से सम्बंधित दस्तावेजों को देखने पर पता चलता है कि उक्त भूमि विक्रय से जुड़े दस्तावेजों में भारी अनियमितताएं हैं:
कुछ दस्तावेजों में प्रॉपर्टी का फोटो संलग्न ही नहीं है, कई स्थानों पर सहखातेदार के हस्ताक्षर तक नहीं किए गए हैं!
इन अनियमितताओं के चलते संदेह बढ़ गया है कि इस विक्रय को योजनाबद्ध तरीके से दलालों ने गढ़ा और अंजाम दिया। * खरीददार भी उलझा – दो बार नामांतरण हुआ निरस्त *
इस विक्रय से जुड़े सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि कनसराम जिसने यह जमीन खरीदी वह स्वयं फंस चुका है। विक्रय के बाद उसने जमीन का नामांतरण कराने के लिए दो बार आवेदन दिया, लेकिन दोनों बार नामांतरण निरस्त कर दिया गया। यानी न तो उसे वैध स्वामित्व मिल पा रहा है, और न ही खरीदी गई ज़मीन का वास्तविक उपयोग।
कानूनी लड़ाई की तैयारी में पीड़िता
ढोलीराम की पत्नी और पुत्री, जो इस पूरे प्रकरण की असली पीड़ित हैं, अब विधिक लड़ाई की तैयारी में जुट गई हैं। उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि बिना उनकी अनुमति के की गई बिक्री को अवैध घोषित कर नामांतरण रद्द किया जाए। साथ ही उन्होंने दलालों और संलिप्त पुत्रों पर धोखाधड़ी व कूटरचना के तहत आपराधिक मामला दर्ज कराने का संकेत भी दिया है।
दलालों ने रची साजिश, तीनों पक्षों को दिया धोखा
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है ज़मीन दलालों ने, जिन्होंने झूठे व अधूरे दस्तावेज़ों पर जमीन की खरीद-बिक्री कर सभी पक्षों को गुमराह किया।
न तो खरीदार को वैध ज़मीन नहीं मिल पाई,विक्रेताओं को पूरा पैसा नहीं मिला और न ही असली वारिसों को जमीन में उनका हक़, यानि असली हक़दार भटक रहे और दलालों ने चांदी काट ली !
प्रशासनिक सतर्कता की अग्नि परीक्षा
अब यह मामला राजस्व प्रशासन की पारदर्शिता और संवेदनशीलता की अग्नि परीक्षा बन गया है। तहसीलदार की जांच रिपोर्ट और उसके आधार पर की कार्रवाई यह तय करेगी कि न्याय होगा या नहीं। यदि दोषियों के विरुद्ध कठोर कदम नहीं उठाए गए, तो यह मामला क्षेत्र में भूमि संबंधी कानूनों की विश्वसनीयता को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।