धरमजयगढ़ – छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा के सख्त निर्देश और कड़े कानूनों के बावजूद रायगढ़ जिले के सुदूर वनांचल क्षेत्रों में गौ तस्करी का अवैध धंधा बेखौफ जारी है। सात साल की सजा और 50 हजार रुपये जुर्माने के प्रावधान के साथ-साथ थाना प्रभारियों पर कार्रवाई की चेतावनी भी हवा-हवाई साबित हो रही है। जमीनी हकीकत यह है कि पुलिस की निष्क्रियता और प्रशासन की अनदेखी के चलते यह काला कारोबार दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। क्या सरकार के दावे सिर्फ कागजी शेर हैं, या फिर तस्करों के आगे सिस्टम बेबस हो चुका है? तस्करी का गढ़ बना वनांचल: मुख्य केंद्र और सेफ कॉरिडोर लैलूंगा, धरमजयगढ़, छाल, हाटी और कापू जैसे सुदूर इलाके गौ तस्करी के हॉटस्पॉट बन गए हैं। लैलूंगा क्षेत्र के हांड़ीपानी, तोलमा, आमापाली, झगरपुर, गमेकेला, बरदरहा, ढोरोबीजा, टांगरजोर और टोंघोपारा जैसे सीमावर्ती गांव अंतरराज्यीय तस्करी का सबसे बड़ा केंद्र बन चुके हैं। तस्कर गुप्त रास्तों जैसे आमापाली, पोटीया, बगडाही, कड़ेना, मालपानी, करहिकछार, सहसपुर, कटाईपाली और बरदरहा से मवेशियों को ओडिशा और झारखंड की ओर ले जाते हैं। सूत्रों के अनुसार, हर सोमवार और गुरुवार को लगने वाले बाजारों में रात 11 बजे से सुबह 5 बजे तक हजारों मवेशियों को पैदल हांककर सीमा पार पहुंचाया जाता है। पुलिस की संदिग्ध भूमिका: संरक्षण या सांठगांठ? ग्रामीणों का सनसनीखेज आरोप है कि स्थानीय पुलिस तस्करों को खुला संरक्षण दे रही है। जिन थाना प्रभारियों को पहले से सूचना दी जाती है, वे कार्रवाई के बजाय आंखें मूंद लेते हैं। कुछ पुलिसकर्मी तो तस्करों के नेटवर्क का हिस्सा बनकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। प्रशासन को तस्करी के रूट्स और ठिकानों की पूरी जानकारी होने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा। यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या कानून का डर अब तस्करों के लिए मजाक बन गया है? अमानवीयता की हदें पार: मवेशियों पर क्रूरता की तस्करी के दौरान मवेशियों के साथ हो रही बर्बरता दिल दहला देने वाली है। भूखे-प्यासे जानवरों को 500 से 1000 रुपये की मजदूरी पर हायर किए गए दिहाड़ी मजदूर बेरहमी से पीटते हैं। कई मवेशी दम तोड़ देते हैं, लेकिन तस्करों की क्रूरता थमने का नाम नहीं लेती। पशु क्रूरता अधिनियम की खुलेआम धज्जियां उड़ रही हैं, लेकिन प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है। राज्य सरकार ने गौ तस्करी रोकने के लिए कठोर कानून बनाए। पकड़े गए वाहनों को राजसात करने, वाहन मालिकों पर कार्रवाई और पुलिस की मिलीभगत पर सख्त एक्शन का वादा किया गया। हर जिले में नोडल अधिकारी नियुक्त कर विशेष निगरानी की बात कही गई। लेकिन यह सब कागजों तक ही सीमित है। हमारी टीम की पड़ताल में साफ हुआ कि यह तस्करी महज अपराध नहीं, बल्कि एक संगठित माफिया नेटवर्क है। जब प्रशासन को सब पता है, तो कार्रवाई क्यों नहीं होती? क्या सरकार के सख्त आदेश अब बेमानी हो चुके हैं? साख पर सवाल, जनता मांग रही जवाबअब सबकी नजरें सरकार और उच्च अधिकारियों पर टिकी हैं। क्या वे इस संगठित तस्करी के जाल को तोड़ पाएंगे, या यह अपराधियों के लिए सेफ कॉरिडोर बना रहेगा?
