

धरमजयगढ़ – सुबह का सूरज जैसे ही आसमान पर उभरा, वैसे ही धरमजयगढ़ की फिज़ा में खुशियों की खुशबू घुलने लगी। रमज़ान के मुकम्मल रोज़ों के बाद आज ईद का मुबारक दिन था—एक ऐसा दिन, जो सिर्फ जश्न का नहीं, बल्कि मुहब्बत और इंसानियत का पैगाम लेकर आया था।

सुबह से ही शहर की गलियां रौनक से भर गईं। बच्चे नए कपड़ों में उछलते-कूदते नजर आए, तो बुजुर्गों की आंखों में बीते जमाने की ईदों की यादें ताजा हो गईं। सफेद लिबास में सजे लोग इत्र की भीनी खुशबू के साथ ईदगाह की ओर बढ़ रहे थे। कोई हाथ में तसबीह लिए जा रहा था, तो कोई सिर पर अमामा बांधे हुए। हर चेहरा एक अलग ही रौशनी से दमक रहा था—यह रौशनी थी ईमान और सुकून की।
ईदगाह में छलक पड़े जज्बात
जब तकबीर की आवाज़ गूंजी, तो सैकड़ों सिर एक साथ झुक गए। नम आंखों से, कांपते हाथों से, हर किसी ने अपने रब से दुआ मांगी—”या अल्लाह! इस दुनिया को अमन और सुकून से भर दे। हर भूखे को रोटी, हर बेबस को सहारा, और हर दिल को सुकून अता कर।”
जामा मस्जिद के इमाम हाफिज मोहम्मद ताहिर साहब ने ईद की नमाज अदा कराई। नमाज के बाद जब सभी ने गले मिलकर एक-दूसरे को ईद की मुबारकबाद दी, तो वह आलिंगन सिर्फ दो इंसानों के बीच नहीं था, बल्कि वह मुहब्बत, भाईचारे और इंसानियत का अहद था।
यतीमखाने और गरीब बस्तियों में भी पहुंची खुशियां
ईद सिर्फ खुशहाल घरों की रौनक नहीं होती, बल्कि इसका असली मकसद उन चेहरों पर मुस्कान लाना होता है, जिनकी आंखों में अक्सर उदासी बसती है। कई मुस्लिम भाई-बहनों ने इस बार ईद का जश्न अनाथालयों और गरीब बस्तियों में जाकर मनाया। बच्चों को नए कपड़े पहनाए, सेवइयां खिलाईं और उनके सिर पर प्यार भरा हाथ फेरा। जब उन मासूम आंखों में खुशी की चमक दिखी, तो यह एहसास हुआ कि ईद की असली मिठास इसी में है।
रात तक चलता रहा ईद का कारवां
शहर की बाजारें देर रात तक गुलजार रहीं। मिठाइयों की दुकानों पर रौनक थी, और हर घर से सेवइयों की मीठी खुशबू आ रही थी। रिश्तेदारों के घर आने-जाने का सिलसिला जारी रहा। हर दरवाजा मेहमानों के स्वागत में खुला था, और हर घर में खुशियों का दस्तरखान सजा था।
ईद की यह रोशनी सिर्फ एक दिन के लिए नहीं थी। यह रोशनी उन दिलों में भी उतर गई थी, जो सालों से किसी अपने की राह तक रहे थे। यह त्योहार सिर्फ इबादत और जश्न का नहीं, बल्कि यह याद दिलाने का था कि इंसानियत से बढ़कर कुछ नहीं, और मुहब्बत से खूबसूरत कोई जश्न नहीं।