धरमजयगढ़ – धरमजयगढ़ जनपद पंचायत के अंतर्गत अमृतपुर गांव स्थित माँ अंबे (अंबेटिकरा) मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। इस मंदिर तक जाने वाली सड़क लक्ष्मीनगर, लक्ष्मीपुर, जमरगी, टोकरोडण्ड सहित कई गांवों को जोड़ती है, लेकिन इसकी जर्जर हालत श्रद्धालुओं और ग्रामीणों के लिए यातना का कारण बन गई है।

सरकारी दस्तावेजों में बनी सड़कें, मगर जमीनी हकीकत अलग
स्थानीय निवासियों का कहना है कि 2022 से लेकर अब तक इस सड़क के नाम पर लाखों रुपये खर्च होने के दावे किए गए हैं। पंचायत के दस्तावेज बताते हैं कि 15वें वित्त आयोग के तहत राजा डेरा, चांदीडांड महकुल पारा, अमृतपुर बस्ती और अमृतपुर में सड़कों का जाल बिछाया गया है। मगर जब हकीकत देखी जाती है, तो यह सड़कें बदहाली पर आंसू बहा रही हैं।
गड्ढों में तब्दील यह सड़कें बारिश में और भी खतरनाक हो जाती हैं। श्रद्धालुओं को माँ अंबे के दर्शन करने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। मंदिर तक जाने के दौरान बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों को असुविधा झेलनी पड़ती है, वहीं वाहन चालकों के लिए यह रास्ता दुर्घटनाओं को न्योता देने वाला बन गया है।
जब इस मुद्दे पर गांव के प्रमुख से संपर्क करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने फोन तक रिसीव नहीं किया। यह चुप्पी कई सवाल खड़े करती है—क्या ग्रामीणों और श्रद्धालुओं की तकलीफों से प्रशासन को कोई फर्क नहीं पड़ता? क्या सरकार और पंचायत को माँ अंबे मंदिर तक जाने वाली इस पवित्र सड़क की सुध लेने की जरूरत महसूस नहीं होती? का कारण बन गई है।
सरकारी दस्तावेजों में बनी सड़कें, मगर जमीनी हकीकत अलग
स्थानीय निवासियों का कहना है कि 2022 से लेकर अब तक इस सड़क के नाम पर लाखों रुपये खर्च होने के दावे किए गए हैं। पंचायत के दस्तावेज बताते हैं कि 15वें वित्त आयोग के तहत राजा डेरा, चांदीडांड महकुल पारा, अमृतपुर बस्ती और अमृतपुर में सड़कों का जाल बिछाया गया है। मगर जब हकीकत देखी जाती है, तो यह सड़कें बदहाली पर आंसू बहा रही हैं।
गड्ढों में तब्दील यह सड़कें बारिश में और भी खतरनाक हो जाती हैं। श्रद्धालुओं को माँ अंबे के दर्शन करने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। मंदिर तक जाने के दौरान बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों को असुविधा झेलनी पड़ती है, वहीं वाहन चालकों के लिए यह रास्ता दुर्घटनाओं को न्योता देने वाला बन गया है।
जब इस मुद्दे पर गांव के प्रमुख से संपर्क करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने फोन तक रिसीव नहीं किया। यह चुप्पी कई सवाल खड़े करती है—क्या ग्रामीणों और श्रद्धालुओं की तकलीफों से प्रशासन को कोई फर्क नहीं पड़ता? क्या सरकार और पंचायत को माँ अंबे मंदिर तक जाने वाली इस पवित्र सड़क की सुध लेने की जरूरत महसूस नहीं होती?