धरमजयगढ़ नगर पंचायत में उपाध्यक्ष पद को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के भीतर घमासान मचा हुआ है। अनुसूचित जनजाति वर्ग से उपाध्यक्ष बनाए जाने की मांग ने स्थानीय भाजपा संगठन को असमंजस में डाल दिया है। पार्टी के भीतर इस पर गंभीर मंथन हो रहा है, और सूत्रों के अनुसार, वरिष्ठ आदिवासी नेता अजय राठिया को इस पद की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।
वरिष्ठ पार्षदों की अनदेखी और गुटबाजी का खेल
नगर पंचायत में भाजपा के कुल 10 पार्षद चुनकर आए हैं। इनमें वार्ड क्रमांक 03 से श्रीमती माघो बाई राठिया एवं उनके पति सुरेश राठिया (राठिया दंपत्ति) 5 बार, जबकि वार्ड क्रमांक 13 के पार्षद अजय राठिया और उनकी धर्मपत्नी (राठिया दंपत्ति) 3 बार निर्वाचित हुए हैं। इनके अलावा, वार्ड क्रमांक 07 के पार्षद विजय यादव 5 बार पार्षद बन चुके हैं और पूर्व में नगर पंचायत उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं।
परिस्थितियों को देखते हुए, यह सवाल उठ रहा है कि आखिरकार नगर पंचायत में सबसे वरिष्ठ पार्षदों को उचित पद क्यों नहीं मिल पा रहा? इन अनुभवी नेताओं को केवल उनके वार्डों तक सीमित कर दिया गया है, जिससे उनकी राजनीतिक छवि का विस्तार नहीं हो पा रहा।
“शर्तों” का दायरा और गुटबाजी की राजनीति
सूत्रों की मानें तो उपाध्यक्ष पद के लिए “शर्तों” का दायरा रखा गया है, जिसकी कसौटी पर खरा उतरने वाला ही इस पद पर काबिज हो सकेगा। लेकिन यह शर्तें क्या होंगी और किसके हितों को साधने के लिए रखी गई हैं, यह अब तक स्पष्ट नहीं हुआ है। यही वजह है कि भाजपा के कई वरिष्ठ नेता खुद को राजनीतिक “पैनल” और “गुटबाजी” के बंधनों में जकड़ा महसूस कर रहे हैं।
अगर उपाध्यक्ष पद के लिए गुटबाजी हावी रही, तो यह तय है कि योग्य और वरिष्ठ नेता इस दौड़ से बाहर हो सकते हैं। दूसरी ओर, ऊंची पहुंच रखने वाला या शर्तें पूरी करने वाला कोई अन्य नेता इस पद तक पहुंच सकता है।
क्या भाजपा आदिवासी नेतृत्व को बढ़ावा देगी?
अनुसूचित जनजाति वर्ग से उपाध्यक्ष बनाए जाने की मांग भाजपा के लिए एक नई चुनौती बनकर उभरी है। पार्टी को तय करना होगा कि वह वरिष्ठ पार्षदों की अनदेखी कर एक नया समीकरण बनाना चाहती है या फिर पारंपरिक समीकरण को बरकरार रखते हुए गुटबाजी को हवा देगी।
भाजपा के भीतर उपाध्यक्ष पद को लेकर चल रही यह रस्साकशी किस दिशा में जाएगी, यह आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा। लेकिन यह तय है कि अगर पार्टी गुटबाजी और शर्तों के खेल से ऊपर नहीं उठी, तो इसका असर स्थानीय संगठन पर जरूर पड़ेगा। हालांकि विगत नगरीय निकाय चुनाव में चुनाव का कुशल संचालन कर विजयी रणनीति बनाने वाले मंडल भाजपाध्यक्ष भरत लाल साहू एक बार फिर अपनी कुशल नेतृत्व से इस समस्या का समाधान निकाल लेंगे इसकी संभावना भी मजबूत रूप से बनी हुई है !
